सागर। बुंदेलखंड अंचल के सागर शहर की खूबसूरत लाखा बंजारा झील के किनारे स्थित ऐतिहासिक वृंदावन बाग मठ इस शहर के लोग इस मंदिर से विशेष आस्था रखते हैं ।
मंदिर की सबसे आकर्षक और खास बात ये है कि ये मठ गज परंपरा का अनुसरण करता है. गज परंपरा के अनुसार वर्तमान में यहां 5वीं परंपरा में हथिनी लक्ष्मी है एक संत की तरह नियम कायदों से इसकी भी दिनचर्या चलती है रोजाना साढ़े 4 बजे जाग जाने वाली हथिनी सुबह मठ की आरती में शामिल होती है रात्रि साढ़े 10 बजे उसके सोने का समय है. इसके अलावा वह आवास-प्रवास और भोजन भी निश्चित समय पर करती है. इस मठ के आकर्षण का केंद्र इस हथनी की सारा शहर 'गजलक्ष्मी' के रूप में सेवा करता है. वृंदावन बाग मंदिर के वर्तमान महंत नरहरिदास ने बताया कि वृंदावन बाग मंदिर मठ राज दरबारी मंदिर है. इसका निर्माण यहां मराठा सत्ता के समय मराठाओं द्वारा कराया गया था. इसलिए ये राजदरबारी मठ रहा है.
प्राचीन समय में इस मठ में घोड़ा-हाथी रखने की परंपरा रही है उसी का पालन अब तक किया जाता रहा है वर्तमान में यहां जो हथिनी है उसका नाम लक्ष्मी है जो यहां की 5वीं परंपरा की निर्वाहक है.इसे यहां वर्ष 2007 में लाया गया था महंत बताते हैं कि हाथियों की परंपरा से जुड़ी एक ऐसी किवंदती है कि सागर के दुबे लंबरदार के यहां हाथी हुआ करता था, उसे सागर झील में स्नान की अनुमति नहीं दी गई तो उन्होंने उस हाथी को मंदिर को दान कर दिया था.ओर यह हाथी मठ का सदस्य हो गया, जबसे ही मठ ने गज परंपरा की शुरूआत की. ये परंपरा अब तक चली आ रही है. जैसे-जैसे गज परंपरा के हाथियों का निधन होता गया,तो उनका स्थान नए हाथी लेते जाते हैं वर्तमान में हथिनी लक्ष्मी मठ की प्रधान सदस्य है वृंदावन बाग मठ की जो अवधारणा यहां के लोगों के मन में है जिसमें सबसे पहले गज की आवृत्ति आती है कि यह हाथी वाला मंदिर है. इसलिए ये विशेष है यहां इसका प्रवास देवतुल्य है. ये एक तरह से प्रथम पूज्य गणेश जी हैं इसलिए इनको द्वार पर रखा जाता है
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